जब भारत ने 63 दिनों में 488 नान स्‍टाप फ्लाइट्स के जरिए 1.70 लाख लोगों को किया था एयरलिफ्ट, गिनीज बुक में दर्ज है ये घटना!


रूस और यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग से वहां मौजूद भारतीयों को सकुशल निकालने की जो समस्‍या आज देश के सामने खड़ी हो रखी है वही समस्‍या एक बार 1990 में भी आई थी। उस वक्‍त एक लाख सत्‍तर हजार लोगों को एयरलिफ्ट किया गया था।

एयर इंडिया की यह उपलब्धि अभी भी एक विश्व रिकॉर्ड है, जिसे 13 अगस्त से 11 अक्टूबर, 1990 के बीच अंजाम दिया गया था।

उस समय कुवैत में 1,70,000 से ज्यादा भारतीय फंसे हुए थे और उन लोगों को अम्मान से मुंबई लाने के लिए एयर इंडिया के विमानों ने कुल 488 उड़ानें भरीं थी। यह दूरी 4000 किलोमीटर से भी ज्यादा थी। यह अभियान खाड़ी युद्ध के दौरान चलाया गया था, जिसमें कुवैत और इराक में रह रहे भारतीय लोगों को बचाया गया था।

रूस और यूक्रेन के बीच छिड़ी भीषण जंग में वहां फंसे भारतीयों को लाना एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। यूक्रेन से जान बचाने के लिए भारतीय अलग अलग देशों की तरफ रुख कर रहे हैं। वहीं भारत ने भी इन भारतीयों को वापस लाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। यूक्रेन के पड़ोसी देशों से लगातान विशेष विमानों के जरिए भारतीयों को वापस लाया जा रहा है। सरकार लगातार इनसे संपर्क बनाए हुए है और समय-समय पर पूरी जानकारी भी दे रही है। अब तक करीब दो हजार लोगों को स्‍वदेश वापस लाया जा चुका है। यूक्रेन में करीब बीस से पच्‍चीस हजार भारतीय मौजूद हैं। इस पूरे घटनाक्रम ने करीब 32 वर्ष पुरानी उस कहानी को भी याद दिला दिया है जब भारत के सामने अपने कुछ हजार नहीं बल्कि लाखों लोगों को सकुशल वापस लाने की चुनौती थी।

ये वो वक्‍त था जब इराक ने कुवैत पर हमला कर दिया था और वहां पर रहने वाले भारतीय अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भाग रहे थे। हर तरफ दहशत का माहौल था। हर कोई किसी भी सूरत में वहां से वापस अपने देश आना चाहता था। भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कि अपने लोगों को वहां से कैसे वापस लाया जाए। इराक कुवैत पर ताबड़तोड़ हमले कर रहा था। हर तरफ इराकी लड़ाके पहुंचे हुए थे।

उस वक्‍त भारतीयों को सकुशल निकालने में जिन लोगों ने अहम भूमिका निभाई थी उसमें केरल के मथूनी मैथ्‍यूश्‍ हरभजन सिंह बेदी, अबे वेरिकाड, वीके वैरियर और अली हुसैन का नाम प्रमुख है। इन सभी ने वहां कुवैत में फंसे भारतीयों को निकालने के लिए जी-जान एक कर दी थी। इन्‍होंने लगातार भारत सरकार से संपर्क बनाए रखा और केंद्र से मिले निर्देश पर काम करते रहे। बसों और गाड़ियों के ज़रिए पहले इन लोगों को अम्‍मान ले जाया गया था। 

सरकार ने एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस की मदद से जार्डन के अम्‍मान के रास्‍ते इन सभी लोगों को एयरलिफ्ट किया।

8 अगस्‍त को एयर इंडिया ने इन भारतीयों को लाने के लिए पहली उ़ड़ान भरी थी। इसके बाद लगातार 488 फ्लाइट् के जरिए इन लोगों को वहां से निकाला गया था। वहां से एयरलिफ्ट किए लोगों को लेकर आखिरी फ्लाइट 20 अक्‍टूबर 1990 को भारत आई थी। 63 दिनों के अंदर भारत सरकार ने 1 लाख 70 हजार लोगों को वहां से सुरक्षित बाहर निकाला था। भारत का किया गया ये आपरेशन आज तक के इतिहास में सबसे बड़ा एयरलिफ्ट आपरेशन था। इस आपरेशन को गिनीज बुक आफ वर्ल्‍ड रिकार्ड में शामिल किया गया है। इस घटना ऊपर वर्ष 2016 में एयरलिफ्ट नाम से एक फिल्‍म भी बनी थी, जिसमें अक्षय कुमार ने मुख्‍य किरदार निभाया था।

उस वक्त केंद्र सरकार ने एयर इंडिया ने अपने सारे विमानों को इस काम में लगा दिया था। यहां तक कि इसके लिए एयर इंडिया और वायुसेना दोनों ने मिलकर अपने विमानों को इस काम में लगा दिया, क्योंकि आनेवालों की तादात लाखों में थी। ना तो तब सरकार ने इस आपदा और उस आज तक की सबसे बड़ी रिकॉर्ड तोड़ सफलता का प्रचार किया था, ना प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव और इंद्रकुमार गुजराल ने अपनी पीठ थपथपाई, और ना ही वहां फंसे लोगों से फ्लाईट या जहाजों के लिए कोई पैसे लिए गए।

इसके अलावा भी "ऑपरेशन सेफ होमकमिंग 2011" जो कि 26 फरवरी 2011 को लीबिया के गृहयुद्ध से भाग रहे अपने नागरिकों को निकालने के लिए शुरू किया गया एक ऑपरेशन था। एयर-सी ऑपरेशन "भारतीय नौसेना" और "एयर इंडिया" द्वारा संचालित किया गया था । इस तरह का ऑपरेशन 2006 के लेबनान युद्ध के दौरान हुआ था, जब "ऑपरेशन सुकून" में भारतीय नौसेना और एयर इंडिया का इस्तेमाल किया गया था।

आज की इस प्रोपोगेंडा की राजनीति में -

१). बैंको के राष्ट्रीयकरण का फैसला
२). 1971 का भारत-पाक युद्ध
३). राजघरानों के प्रावि पर्स ख़त्म करने का फैसला
४). 1972 और 1998 के परमाणु परीक्षण
५). 1999 का कारगिल युद्ध
६). इमरजेंसी के खिलाफ आंदोलन
७). इंदिरा सरकार की हिटलरशाही के खिलाफ संघर्ष

आदि ना जाने कितने एैतिहासिक घटनाओं को हम लोग भूल चुके हैं। हर सरकार में कुछ अच्छाई और कुछ बुराईयां होती हैं, मगर विडंबना ये है कि नेताओं की ही तरह आज मीडिया भी लैफ्ट-राईट विंग में बंट चुका है, जिसमें राईट विंग का काम है मौजूदा सरकार की हर सफलता का प्रचार करना और हर विफलता को डिफेंड करना, ये लोग सरकार से ना अर्थव्यवस्था, ना बेरोज़गारी, ना पेगासस और ना ही पीएम केयर फंड पर कभी कोई सवाल पूछते हैं, उल्टा इन पर जो सवाल पूछे उसे चुप कराने का काम इन तथाकथित राईट विंगर्स पत्रकारों का है। 

वहीं लैफ्ट विंगरों का काम है मौजूदा सरकार के हर कदम पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करना मगर विपक्षी दलों के पुराने या मौजूदा काले कारनामों पर ये धड़ा चुप्पी साध लेता है। मीडिया का ये धड़ा आपको इमरजेंसी के फायदे भी गिनवा सकता है और बोफोर्स तोप कांड को डिफेंड भी कर सकता है।

इस सब के बीच 10% एैसे पत्रकार जो सही को सही और गलत‌ को गलत कहने का साहस रखते हैं, उनकी नैया इन दो तथाकथित विचारधाराओं और इनके चौकीदार रूपी पत्रकारों के बीच गोते खा रही है।

खैर, मुस्कुराइए आप भारत में हैं!

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